Saturday, September 17, 2011
यूँ ही...!
इधर कुछ दिनों से...
सब एक अर्जी दे जाते है...
कहते हैं सब मुझसे...
यह बदले मिजाज़ तेरे...
कुछ ख़ास समझ नहीं आते है...!
इन शिकायत-ए-रश्क को देखूं...
तो मै भी सोचूँ...
यूँ अचानक हुआ क्या...
जो मुझको नज़र भी नहीं आता है...
बस कुछ है जो, होता जाता है...
घटता जाता है...!
एक नज़र को जब देखा आइना...
रोक कर पूछा मुझसे...
ऐसे तो तुमने पहले कभी न देखा ...
जो न मिला जवाब कुछ मुझसे...
तो पूछ ही बैठा...
कहीं किसी को ढूँढ़ते तो नहीं...?
बोला मैंने, हंस कर, नहीं...!
देखा तो वो भी हंस ही रहा था...!!
एक शाम...
शब् ने संकोच छोड़,मुझसे पूछा...
यह शब्-ए-गम, कहीं मुझसे तो नहीं...?
मैंने बोला, तुम तो पहले भी थी...
और आगे भी रहोगी, फिर..?
शब् ने कहा, हैरान हूँ मैं इस पर...
की यह आता तो मेरे साथ है...
पर न जाने जाता कब है...?
इससे पहले की कुछ कहता...
तारों ने झांकना शुरू कर दिया...
बादलों की ओट से छुप कर बोले...
पहले तो न ढूँढा करते थे, यूँ शिद्दत से...
अब क्या बात है जो हमे गिनते हो...
कहा मैंने कुछ सोच कर...
जिन्हें देखा...
क्या पता वो आज हो, न हो...
यह दिखने ओर होने का फ़र्क समझ...
वोह सारे भी हंस ही पड़े....!
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just made me realise ki how the dreams evolve... two years down the line you might not want the same things from life as you do today... Some how makes me realise that it is very rare that you get second chances so you might as well live in the present. and guess thats the issue with most of us. At times we are so engrossed planning for future and thinking about what is right and what is not so right that we tend to ignore the present....
ReplyDeleteI like the words you choose and the style of expressing it .... its very nice.
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