Monday, July 4, 2011

LN3.


तेरे साथ में,
क्या कहें हम,
बारिश से हो गए हैं,

की जब होती है...
तो बस वही होती है...
गर जो नहीं होती है...
तो भी एक आस होती है...!

तुम्हे ढूंढे,
की खुद को ढूंढे,
आलम ये है अब,
की आईने में भी,
तुझसे ही गुफ्तगू होती है...!

2 comments:

  1. इस बार सोचा की आपकी शायरी का जवाब कुछ शायराना अन्द्दाज़ में ही दिया जाए.

    थी गर हमसे कुछ गुफ्तगू की चाहत...
    तो क्यूँ की आईने में ढूंढने की हिमाकत...
    इन हवाओं फिजाओं में कहाँ पाओगे हमको...
    खुद से दूर करके क्या भुला पाओगे हमको...
    वजह न जाने तेरी बेचैनी की क्या है ...
    पर तेरी बेचैनी की दावा आईने में कहाँ है..
    पलकों में जब बसी हो एक ही आस..
    दिल में छुपी तन्हाई ले आती है मुझे तेरे पास...
    पलकों में छुपी मेरी तस्वीर तो ढूँढ...
    पलकों में ही छिपी है बारिश की हर बूँद....

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  2. Hey bhagwaan or should I say "Oh dear lord!"
    No doubt the post is good but itni gehrai aayi kaha se prabhu...Thoda gyaan idhar bhi de kripya...

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