Saturday, December 11, 2010

फिर से...!
















हल्की सी लगती है..
हल्के से चलती है..
हल्के रंग की सलवार..
हल्के रंग के कमीज़..
और आँचल कुछ झीना सा.

धूप की सहेली वो..
धूप सा ही रंग..
करती सबको दंग.

आँखों में काजल..
काजल में रात..
रात में चाँद..
और रात में ही तारे..
जो चुपते और दिखते उन दो पलकों के सहारे..
रह-रह कर उठती यही दुआ..
शायद ही किसी ने हो उसको छुआ.

श्रृंगार करे कम जिसको..
हवा उठा कर चलती जिसको..
सीधी-सीधी लटें कुछ ऐसे गिरती उन आँखों पर..
की वोह कब देखे और कब करे नज़रंदाज़..
लगता नहीं बिलकुल भी अंदाज़..
हल्के झटके से ज़ुल्फ़ों को सीधा करना..
भी क्या खूब सीखा था उसने..

ऐसा न कभी सुना..
और न कभी देखा..
और जब देखा..
तो और देखने की चाह भी नहीं रही.

लहराते दुपट्टे को कलाई पर लिपटा देख..
बस अलग सा ही ख्याल आता था..i
वो आपस में बातें करती उंगलियाँ..
जाने किससे और क्या कहती.

शायद मेरी नींदों का एक खूबसूरत बहाना थी.

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