Sunday, December 19, 2010

College Drag
















बात ज़रा पुरानी है..
पर बड़ी हसीन निशानी है.

सुना था बड़ा famous है course ..
enroll कर के जाना..
कभी था fun , कभी था बोझ..

दो साल क्या निकले...
ऐसे गुज़रे की कभी गए ही नहीं.

वोह time पर class में होने का challange ..
कर न पाया हमको end तक change ..
Race तो लगती थी..
पर time पर होने की नहीं..
पीछे वाली seat की.

Teacher के सवाल पर
सबका सर एक साथ झुकना.
और कसी एक के खड़े होने पर
सबका एक साथ मुस्कराना.

Discussion तो होते थे..
पर junta के dressing sense पर,
और उनके 'attitude ' पर..
character certificate देने में..
हम थे सबसे ' pro ' .

हमको खबर थी सबकी..
बाहर की हो या अन्दर की..
क्या चलता है किसके दिमाग में,
और क्या चलता है दिल में,
कोई atleast पूछता तो हमसे.

Mid -sem से पहले,
दिन में movies , और रात में cricket ,
down तो होनी ही थी अपनी wicket .

किसी के highest पाने से भी ज्यादा मज़ा,
तो किसी की back लगने पे लिया जाता.
और वो बेचारा भी साथ ही मुस्कराता.

हद तो End -sem पेपर से पहले थी..
मुश्किल होता decide करना,
कौन सी movie और कहाँ पे treat
वोह मज़ा अब तक न हुआ beat .

Faculty ने भी खूब पढाया..
किसी ने dance कराया,
किसी ने ' google ' कराया,
किसी ने बहुत समझाया,
और किसी ने खूब बनाया.

क्या खूब थे वो दिन,
क्या खूब थी वो रातें,
जो थे वो लोग,
जो थी वो बातें.

Words Love






















Its a little dark here,
and its a little dark everywhere.

Its just you and I around.
and there is something for you.

I want to make words just for you.
Offer you words,
words which would,spread you on the bed,
words which would, run up your thighs,
words which would run down your neck,
and trigger a chill through your spine.

Words which would arch your back like a bridge,
and let the emotions engulf you, drape you,
Words which would bring all your emotions, to your mouth,
transform them into words, fill your cheeks, swell your cheeks,
but your lips shall not part, and they shall not be heard.

Words which would fill your eyes,
roll a tear down,
which would run down your cheeks,
and find salvation on your lips.

If those words could love you,
love you like no man could.

Saturday, December 11, 2010

फिर से...!
















हल्की सी लगती है..
हल्के से चलती है..
हल्के रंग की सलवार..
हल्के रंग के कमीज़..
और आँचल कुछ झीना सा.

धूप की सहेली वो..
धूप सा ही रंग..
करती सबको दंग.

आँखों में काजल..
काजल में रात..
रात में चाँद..
और रात में ही तारे..
जो चुपते और दिखते उन दो पलकों के सहारे..
रह-रह कर उठती यही दुआ..
शायद ही किसी ने हो उसको छुआ.

श्रृंगार करे कम जिसको..
हवा उठा कर चलती जिसको..
सीधी-सीधी लटें कुछ ऐसे गिरती उन आँखों पर..
की वोह कब देखे और कब करे नज़रंदाज़..
लगता नहीं बिलकुल भी अंदाज़..
हल्के झटके से ज़ुल्फ़ों को सीधा करना..
भी क्या खूब सीखा था उसने..

ऐसा न कभी सुना..
और न कभी देखा..
और जब देखा..
तो और देखने की चाह भी नहीं रही.

लहराते दुपट्टे को कलाई पर लिपटा देख..
बस अलग सा ही ख्याल आता था..i
वो आपस में बातें करती उंगलियाँ..
जाने किससे और क्या कहती.

शायद मेरी नींदों का एक खूबसूरत बहाना थी.