Sunday, November 28, 2010

Zindagi..














बड़ी अजीब ज़िन्दगी..
बड़ी करीब ज़िन्दगी..
कभी नपी-तुली ज़िन्दगी..
कभी बेहिसाब ज़िन्दगी..!

कभी एक ज़िन्दगी..
कभी बटी ज़िन्दगी..
कुछ हिस्से जिए..
कुछ हिस्से अनजिए..

कुछ हिस्से जो छुए, खर्च किये..
कुछ हिस्से जो अनछुए, उन्हें बचाए..

कभी साथ ज़िन्दगी...
कभी दूर, कभी पास ज़िन्दगी..
कभी फिसली, कभी सिमटी ज़िन्दगी..

ज़िन्दगी जैसे एक घटना..
जो नहीं बस, घटी..
बस बढ़ी और बढती रही..

बन्दे और ज़िन्दगी का यह खेल..
करते एक दुसरे से आँख-मिचोली..
देख जिसे, दुनिया लगाती अपनी बोली..
जो उनको सुनाई न पड़ती..
और दुनिया उन पर हंसती..
और वो दुनिया पर..!

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