Wednesday, November 17, 2010
Khali, Bechain shabd..
जब नहीं आये थे तुम,
शब्दों का था राज,
और उन्ही के थे सहारे.
पर जो तुम आये,
कुछ बदला तेरे आने से,
शब्द, ढूंढते-फिरते हैं अपने मायने से.
बेचारे शब्द,
जो कभी इतराते थे,
हैरान हैं आज सारे,
फिरते हैं मारे-मारे,
ढूंढते अपने मायने.
तेरे वजूद से, खाली-खाली से ये शब्द,
अब अस्पष्ट और अपूर्ण, यही उनका कष्ट,
जो कहूँ तेरे बारे में कुछ,
तो लज्जित होता हर शब्द,
अपनी असमर्थता पर.
पूरी बात कोई न कह पाता,
तब शब्दों को आँखों का साथ है भाता,
मिलके के करते जो दोनों कोशिश,
तो चेहरे से भी रहा नहीं जाता,
सब मिल जो करते प्रयास संयुक्त,
तब जा के मिलता कुछ सुख..!!
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Shabd me hi nishabd chhipaa hai...hum me hi dusra chhipaa hai jaise....sunder kavita hai..tumhare nirmal,nishcchal mann jaisi..tumhari unchuyi chetnaa jaisi..prem jaisi..prateeksha jaisi..un dono ke jaisi...
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