Saturday, November 13, 2010
May be..
कुछ ऐसा हुआ है हाल-फिलहाल..
जो कर देता है मुझको निहाल..
जानने में तुम्हे, शायद ठीक न लगेगी..
निश्चित थोडा विचलित कर देगी..
पर इसकी व्यथा से ज्यादा, अचरज है मुझको..
की तुमसे भी ज्यादा है कुछ, जो मुझे भर-भर देता है..!
वो है संकरा, तुम हो वृस्त्रित..
तुम हो मौसम, पर वो निश्चित..
तुमसे जुडी तुम्हारी रवानगी..
उसमे सब कुछ, न बस, रवानगी..
तुमसे ज्यादा उसके संग रहने लगा हूँ..
अब उसी में रमने लगा हूँ..
कुछ ऐसी बात है उसमे..
की तुम भी उसका ही, हिस्सा लगते हो..!!
तुम कम न हुए, वोह बस बढ़ता गया..
तुम पीछे न हुए, वोह बस आगे होता गया..
तुम धीमे न हुए, वोह बस तेज़ होता गया..!!
अब उसका साथ है भाता..
शायद तुमसे भी ज्यादा..
अब, शायद, वही तुम्हे करीब है लाता..!!
अतिश्योक्ति न होगी,
अगर यह कहूँ की,
वो तुमसे बड़ा है सहारा..
है वोह इंतज़ार तुम्हारा..!!
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u know i am not a big fan of hindi kavitaas...... but still, keep it up.... coz others like it.....:)
ReplyDeleteI know that.....! ?
ReplyDeleteThats simply an overstatement.
I thought we had a connection..... u a writer n me a follower.... irrespective of my anonymity, I expect you to know me, i expect you to know my likes and dislikes....
ReplyDeletebut having said that, my comments must not bother you...... you just keep the good work going and i'll pass on my comments the way i usually do.....
Maybe I need a signature...... to differentiate me from 'others'....
so here it goes......@
Kavita ki bbaashaa nahi hoti...Poetry is free,like our souls...like the wind..like the oceans...and all efforts towards encasing the limitless,will,sooner or later,prove futile.Tum jiyo,udaan bharo..baho..apne se raho..chaahe jiski sharan gaho..aapbeeti kaho..raho na raho..prem rahegaa......
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