Saturday, March 5, 2011
Peacock.
ए दोस्त,
आज जो मुझसे मिल तू,
फिर तू, कल ही हो मुझसे मिला,या फिर..
बरसो बाद है मिला.
न खुदको थोप मुझपे,
न जता खुदको मुझपे,
बस दिखा खुदको इत्मीनान से.
बनने दे मुझे तेरा मौसम,
जिसका बने मोर तू,
ज़रा उचका अपनी गर्दन,
फैला अपने रंग-पंख तू,
बिखेर वो सारे सिमटे रंग तू,
न शर्मा उन पैरो से,
न छुपा उन पैरों को,
वोह भी तेरे उतने ही अंग.
ज़रा खुद को मुझसे मिलने की,
इजाज़त तो दे,
ज़रा तू दिखा,
ज़रा मै भी देखूं ,
कितना निखरा,
कितना बिखरा तू.
न लगा इसका हिसाब तू,
की वोह मेरा काम है,
न जांच खुदको, मेरी नज़रों से,
की, नज़रिए का फरक तो होगा ही,
और शायद लगेगा भी.
फिर क्यूँ जब तू आज,
मुझसे मिलने को आया,
क्यूँ खुद को साथ लाया है..?
न ओढ़ कोई चादर,
न लगा कोई रंग,
रह मुझसे तू स्वतंत्र..
ज़रा हम भी देखे,
मिजाज़ कैसे हैं आपके..!
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