Sunday, November 28, 2010

Zindagi..














बड़ी अजीब ज़िन्दगी..
बड़ी करीब ज़िन्दगी..
कभी नपी-तुली ज़िन्दगी..
कभी बेहिसाब ज़िन्दगी..!

कभी एक ज़िन्दगी..
कभी बटी ज़िन्दगी..
कुछ हिस्से जिए..
कुछ हिस्से अनजिए..

कुछ हिस्से जो छुए, खर्च किये..
कुछ हिस्से जो अनछुए, उन्हें बचाए..

कभी साथ ज़िन्दगी...
कभी दूर, कभी पास ज़िन्दगी..
कभी फिसली, कभी सिमटी ज़िन्दगी..

ज़िन्दगी जैसे एक घटना..
जो नहीं बस, घटी..
बस बढ़ी और बढती रही..

बन्दे और ज़िन्दगी का यह खेल..
करते एक दुसरे से आँख-मिचोली..
देख जिसे, दुनिया लगाती अपनी बोली..
जो उनको सुनाई न पड़ती..
और दुनिया उन पर हंसती..
और वो दुनिया पर..!

Saturday, November 20, 2010

Unsaid.
















Some are spoken, spoken aloud,
Some are not.....But they are,
They remain..somewhere..latent.

These are not those words,
which come out 'naturally'.
They are like strong gush of water,
forcing away through the glass,
on a dark stormy night.
which flickers, it shivers, like a snake on glass.
It might, just as well speak, but not to be heard.

These words do not comprise of large and categorized
sweeping generalizations and observations ,
but of those little things which push hard,
to get through those split ribs,
with the desire to be expressed.

These words lie buried in fissures of the key hole, when one can't get that thing going,
They come with the smile on one's face when thinking of an ugly, coarse thought,
They are found on the little scribblings, in class, during a lecture,
They are found in those sigh of reliefs, when reached office on time,
They are the same when one doesn't reaches office on time,
They are ones's company in snarling traffic,

They are the words, at times,
When all one wants to say is those words,
And all you say, is but them,
They live through you,
But die on our lips,
They are those silent explosions,
They surface when one blinks and winks,
They are those unpleasant curses,
They are those silent prayers,
They are the moments of grief,
They are the bright flashes,
They are the dark skies.

They are just those little things,
They ensure that there is light in our own skies.

Wednesday, November 17, 2010

Khali, Bechain shabd..














जब नहीं आये थे तुम,
शब्दों का था राज,
और उन्ही के थे सहारे.

पर जो तुम आये,
कुछ बदला तेरे आने से,
शब्द, ढूंढते-फिरते हैं अपने मायने से.

बेचारे शब्द,
जो कभी इतराते थे,
हैरान हैं आज सारे,
फिरते हैं मारे-मारे,
ढूंढते अपने मायने.

तेरे वजूद से, खाली-खाली से ये शब्द,
अब अस्पष्ट और अपूर्ण, यही उनका कष्ट,
जो कहूँ तेरे बारे में कुछ,
तो लज्जित होता हर शब्द,
अपनी असमर्थता पर.

पूरी बात कोई न कह पाता,
तब शब्दों को आँखों का साथ है भाता,
मिलके के करते जो दोनों कोशिश,
तो चेहरे से भी रहा नहीं जाता,

सब मिल जो करते प्रयास संयुक्त,
तब जा के मिलता कुछ सुख..!!

Saturday, November 13, 2010

May be..














कुछ ऐसा हुआ है हाल-फिलहाल..
जो कर देता है मुझको निहाल..

जानने में तुम्हे, शायद ठीक न लगेगी..
निश्चित थोडा विचलित कर देगी..

पर इसकी व्यथा से ज्यादा, अचरज है मुझको..
की तुमसे भी ज्यादा है कुछ, जो मुझे भर-भर देता है..!

वो है संकरा, तुम हो वृस्त्रित..
तुम हो मौसम, पर वो निश्चित..

तुमसे जुडी तुम्हारी रवानगी..
उसमे सब कुछ, न बस, रवानगी..

तुमसे ज्यादा उसके संग रहने लगा हूँ..
अब उसी में रमने लगा हूँ..

कुछ ऐसी बात है उसमे..
की तुम भी उसका ही, हिस्सा लगते हो..!!

तुम कम न हुए, वोह बस बढ़ता गया..
तुम पीछे न हुए, वोह बस आगे होता गया..
तुम धीमे न हुए, वोह बस तेज़ होता गया..!!

अब उसका साथ है भाता..
शायद तुमसे भी ज्यादा..
अब, शायद, वही तुम्हे करीब है लाता..!!

अतिश्योक्ति न होगी,
अगर यह कहूँ की,
वो तुमसे बड़ा है सहारा..
है वोह इंतज़ार तुम्हारा..!!